Saurabh Patel

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१५- जन एकता की भाषा हिंदी- रचना १५


उन्हें भी हमे लेकर कैसे कैसे भ्रम हुआ करते थे
एक वक्त पे जिनकी दुनियां हम हुआ करते थे 

किसी शख्स को भूलना और फ़िर उसकी यादों को
मुहब्बत में हम पे कितने सितम हुआ करते थे

याद आते है हमें वो मुहब्बत से भी पहले के दिन
हमारे पास करने के लिए कितने काम हुआ करते थे

अब तो बाप के नाम पर लोग आ चले है महफिल में
असल शायर वो थे जिनके पास खुद के गम हुआ करते थे

नहीं रहे वो ग़ालिब, मीर और जॉन के ज़माने "सौरभ"
एक वक्त था जब बड़े ऊंचे अदब के मकाम हुआ करते थे।

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14 Comments

Supriya Pathak

18-Sep-2022 12:13 AM

Achha likha h

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Saurabh Patel

18-Sep-2022 11:05 AM

जी बहुत शुक्रिया आपका

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Pratikhya Priyadarshini

16-Sep-2022 04:46 PM

Achha likha hai 💐

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Saurabh Patel

16-Sep-2022 04:50 PM

जी बहुत शुक्रिया आपका

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Suryansh

16-Sep-2022 07:01 AM

लाजवाब लाजवाब

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Saurabh Patel

16-Sep-2022 09:13 AM

जी बहुत शुक्रिया आपका

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